Byaah - 1 in Hindi Moral Stories by Vandana Gupta books and stories PDF | ब्याह ??? - 1

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ब्याह ??? - 1

ब्याह ???

(1)

“नैन नक्श तो बडे कंटीले हैं साफ़ सुथरे दिल को चीरने वाले गर जुबान पर भी नियन्त्रण होता तो क्या जरूरत थी फिर से सेज चढने की ।“

“ हाय हाय ! जीजी ये क्या कह दिया ? जो कह रही हो सोचा कभी तुम भी वो ही कर रही हो वो ही जुबान बोल रही हो । न जीजी कोई औरत कब खुशी से दोबारा सेज सजाती है, जाने क्या मजबूरी रही होगी, कभी इस तरह भी सोचा करो । औरत की तो बिछावन और जलावन दोनो ही कब किसी के काम आयी हैं, वो तो हमेशा निरीह पशु सी हाँकी गयी है, कभी इस देश कभी उस देश, एक साँस लेने के गुनाह की इतनी बडी सजा तो सिर्फ़ एक औरत को ही मिला करती है, दुनिया भला कब बर्तन में झाँका करती है बस कडछी के खडकने से अंदाज़े लगाती है कि बर्तन में तरकारी बची है या नहीं । और आज तुम भी यही कर रही हो बिना सोचे समझे जाने आखिर क्यों ये नौबत आयी ? आखिर क्यों औरत के सिर्फ़ हाड माँस का ही हमेशा सौदा होता रहा बिना उसकी इजाज़त के बिना उसके मन के । “

“मन, हा हा हा मन, अरी औरत का भी कभी कोई मन हुआ करता है ? क्या हमारा तुम्हारा भी कभी मन हुआ किसी बात का ? क्या हम नही जीये, क्या हम खुश नहीं रहे, क्या कमी रही भला बता तो रज्जो ।“

“जीजी, तुम क्यों जान कर भी अंजान बन रही हो, किसे भुलावे में रखना चाह रही हो मुझे या खुद को या इस समाज को। बताना जरा कितनी बार तुमने अपने मन से ओढा पहना या कोई भी निर्णय लिया जो किया सब जीजाजी के लिए किया, बच्चों के लिए किया, घर परिवार के लिए किया । “

“ तो क्या गलत किया रज्जो यही तो ज़िन्दगी होती है और ऐसे ही चला करती है क्या हमारी माँ ऐसे नहीं जी या हमारी सखियाँ या आस पास की औरतें ऐसे नहीं जीतीं तो इसमें बुराई क्या है । सबको सुख देते हुए जीना थोडा बहत त्याग कर देना तो उससे घर में जो वातावरण बनता है उसमें बहुत अपनत्व होता है और देख उसी के बल पर तो घर के मर्द बेफ़िक्री से काम धन्धे पर लगे रहते हैं । जाने तुझे कब ये बात समझ आयेगी कि औरत का काम घर की चाहरदीवारी को सुरक्षित बनाए रखना है और मर्द का उसके बाहर अपने होने की तैनाती का आभास बनाए रखना और ज़िन्दगी गुजर जाती है आराम से इसी तरह । भला क्या जरूरत थी इसे इतने ऊँचे शब्द बोलने की ? भला क्या जरूरत थी इसे अपने भर्तार को दुत्कारने की वो भी इस हद तक कि वो आत्महत्या कर ले । भला ऐसी सुन्दरता किस काम की जो आदमी की जान ही ले ले, ऐसा क्या घमंड अपने रूप यौवन का जो एक बसे बसाए घर को ही उजाड दे और तुम कहती हो चुप रहो । भई अपने से ये अनर्थ देख चुप नहीं रहा जाता । “

“ जीजी, तुम नहीं जानती क्या हुआ है ? तुमने तो बस जो सुना उसी पर आँख मूँद विश्वास कर लिया अन्दर की बात तुम्हें नहीं पता यदि पता होती तो कभी ऐसा न कहतीँ बल्कि सुनयना से तुम्हें सहानुभूति ही होती । कभी कभी सच को सात परदों में छुपा दिया जाता है फिर भी वो किसी न किसी झिर्री से बाहर आ ही जाता है । बेशक सबको नहीं पता मगर मुझे पता चल गयी है लेकिन तुम्हें एक ही शर्त पर बताऊँगी तुम किसी से कहोगी नहीं । “

(अचरज से रज्जो को देखते हुए ) “अरे रज्जो, ये क्या कह रही है तू, जो सारे में बात फ़ैली हुई है क्या वो सही नहीं है ? तो सच क्या है ? बता मुझे किसी से नहीं कहूँगी तेरी सौं । “

“ जीजी, जाने क्या सोच ईश्वर ने औरत की रचना की और यदि की भी तो क्यों नहीं उसे इतना सख्तजान बनाया जो सारे संसार से लोहा ले सकती । बेबसियों के सारे काँटे सिर्फ़ उसी की राह में बो दिए हैं और उस पर सितम ये कि चलना भी नंगे पाँव पडेगा वो भी बिना उफ़ किए बस ऐसा ही तो सुनयना के साथ हुआ है जो एक ऐसा सच है जिसके बारे में किसी को नहीं पता । “

“मुझे आज भी याद है जब सुनयना डोली से उतरी थी जिसने देखा उसे ही लगा मानो चाँद धरती पर उतर आया है । खुदा ने एक एक अंग को ऐसे तराशा मानो आज के बाद अब कोई कृति बनानी ही नहीं, जाने किस फ़ुर्सत में बैठकर गढा था कि जो देखता फिर वो स्त्री हो या पुरुष देखता रह जाता । चाल ऐसी मोरनी को भी मात करे, बोली मानो कोयल कुहुक रही हो सबका मन मोह लेती, एक पल में दुख को सुख में बदल देती किसी के चेहरे पर उदासी देख ही नहीं सकती थी । जैसे बासन्ती बयार ने खुद अविनाश के आँगन में दस्तक दी हो । हर पल मानो सरसों ही महक रही हो आँगन यूँ गुलज़ार रहता । आस पडोस दुआयें देता न थकता जिसका जो काम होता ऐसे करती मानो जादू की छडी हाथ में हो और अपने घर का काम कब करती किसी को पता भी नहीं चलता क्या छोटा क्या बडा सब निहाल रहते क्योंकि बतियाने में उसका कोई सानी ही नहीं था । अविनाश के पाँव जमीन पर नहीं पडते उसे भला और क्या चाहिए था ऐसी सुन्दर सुगढ पत्नी जिसे मिल जाए उसे और क्या चाहिए भला । सास ससुर, देवर, जेठ जेठानी सबकी चहेती बनी हवा के पंखों पर एक तितली सी मानो उडती फ़िरती और अपने रंगों से सबको सराबोर रखती । इसी सब में छह महीने कब निकले किसी को पता न चला । “

“अचानक एक दिन अविनाश के घर से रोने चीखने की आवाज़ें सुन सारे पडोसी भागे आखिर क्या हो गया ऐसा और जाकर देखा तो अविनाश की लाश बिस्तर पर पडी थी और सुनयना तो मानो पत्थर बनी खडी थी । अचानक जैसे काले बादलों ने उसके सुख के आकाश को अपने आगोश में लपेट लिया था । ऐसा क्या हुआ अचानक किसी को समझ नहीं आया । हर कोई पूछ रहा था मगर सब चुप थे । अविनाश की माँ दहाडें मार रो रही थी और जब उनसे पूछा तो जो सुना तो सबके पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी । “

“अरे इस कलमुँही से पूछो, मेरे अविनाश को इसी ने मरने को मजबूर किया है, अगर इसने उसका कहना माना होता तो आज मेरा बेटा ज़िन्दा होता । सबके आगे अच्छे बनने का ढोंग किए घूमा करती है मगर आज तक अविनाश को छूने तक नहीं दिया खुद को आखिर वो भी इंसान है बस दो चार बातें उसने कह दीं कि नहीं मानेगी तो मैं आत्महत्या कर लूँगा देख ले तो बोली कर लो और देखो मेरा लाल मुझे छोड कर चला गया । हमें तो पता भी न चला अन्दर ही अन्दर क्या चल रहा है वो तो कल रात इनकी आवाज़ें बाहर आ रही थीं तो हमने सुन लीं वरना तो पता भी न चलता आखिर हुआ क्या ? “

सुनयना टुकुर टुकुर सास के मुख को देखती रही मगर जब सास का कोसना बँद नहीं हुआ और सब उसे ही दुत्कारने लगे तो घायल शेरनी सी बिफ़र पडी और जो उसने कहा वो सुनने के बाद शायद कुछ भी सुनने को बाकी नहीं बचा था ……

“हाँ, हाँ, मुझे ही दोष दो क्योंकि तुम्हारा आखिरी हथियार मैं ही हूँ न जानते हो सब बेबस है, लाचार है, स्त्री है तो कुछ कर नहीं सकती, कुछ कह नहीं सकती मगर इतनी भी बेबस लाचार नहीं जो सच और झूठ सामने न ला सकूँ । “

इतने मे पुलिस आ गयी वो पोस्टमार्टम को ले जाने लगी क्योंकि मामला आत्महत्या का था तो सास व घर के लोग रोकने लगे मगर सुनयना बोल उठी, “क्यों नही ले जाने देते, किस बात का डर है, क्या इस बात का कि सच सामने आ जायेगा ? मैं तो खुद चाहती हूँ सारी दुनिया को तुम्हारे घर की असलियत पता चले ताकि फिर कोई लडकी मेरी तरह न बर्बाद हो । “

“चुप कर कलमुंही, बेटे को खाकर चैन नहीं पडा जो अब हम सब को खाने पर तुली है । आखिर चाहती क्या है, क्यों उसकी लाश की दुर्गति करवा रही है, अब उसकी मिट्टी को तो चैन से मिट्टी में मिलने दे ।“

“नहीं, मैं तो सच को सामने लाना चाहती हूं ताकि सबको पता चले वरना तो तुम लोग मुझे दोषी सिद्ध कर दोगे और मैं इतनी कमज़ोर नहीं जो अपने लिए न लड सकूँ । ये एक स्त्री की अस्मिता का सवाल है इंस्पैक्टर साहेब लाश को ले जाइए मैं इंतज़ार करूँगी सच का ।“

पोस्टमार्टम में पुष्टि हो गयी कि उसने ज़हर खाया है और पुलिस सबके कहने पर सुनयना को पकड कर ले गयी सभी को यही लगा कि सुनयना की वजह से अविनाश ने खुदकुशी की है । मगर कोई सुनयना ने तो ज़हर दिया नहीं था इसलिए पुलिस उसे हिरासत में ज्यादा दिन रख नहीं पायी । सुनयना के घरवाले उसे अपने घर ले गए और किसी तरह मामले को रफ़ा दफ़ा किया गया और सबको यही लगा सुनयना गुनहगार है जबकि असलियत सात पर्दों में कैद छटपटा रही थी बाहर आने को क्योंकि पोस्टमार्टम में एक तथ्य और उजागर हुआ था जिसे सबसे छुपा लिया गया था मगर सुनयना चुप बैठने वालों में से नहीं थी वहीं उसके घरवालों ने उसी बिनाह पर सुनयना को मुक्त करवा लिया था उन लोगों से वरना तो जाने वो बेगुनाह उस गुनाह की सजा भुगतती जो उसने किया नहीं था और बल्कि तब तक भुगत भी रही थी एक ऐसा जीवन जीकर जिसे शायद ही कोई लडकी स्वीकार कर पाये और इस तरह जी पाये जैसे उसने जीया था । इतने कम दिनों में सभी को अपना बना लेना क्या इतना आसान होता है ? हर किसी के दिल में जगह बना लेना जबकि आज के वक्त में लोग अपनों को नहीं जान पाते इतने से दिनों में उसने तो जैसे एक अलग संसार ही खडा कर लिया था अपने लिए । ये सब यूँ ही संभव नहीं हुआ था बल्कि सुनयना के त्याग और तपस्या का फ़ल था और अब वो उसे बेकार नहीं जाने देना चाहती थी इसलिए उसने अपने तरीके से सच्चाई सामने लाने की कोशिशें शुरु कर दीं ताकि कम से कम जिन लोगों के दिलों में उसने स्थान बनाया था वो तो कम से कम उसे नफ़रत से याद न करें ।

एक दिन मैं इस्कॉन मंदिर गयी थी वहीं अचानक सुनयना से मिलना हो गया तो गले लगकर भरभरा कर रो पडी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसे क्या कहूँ क्योंकि तब तक मैं भी यही मानती थी कि इसके कारण एक हँसता खेलता परिवार बर्बादी के कगार पर पहुँच गया मगर उसने कसम देकर मुझे रोका और कहा, ”आप जानना नहीं चाहेंगी मौसी की सच क्या था ?”

उसके शब्दों ने मेरे पाँव जकड लिए दूसरी ओर उत्सुकता के पंछी भी कुलबुलाने लगे क्योंकि जिस दृढता से उस दिन वो सब आगे बोल रही थी तो लगता था कि जो दिख रहा है उसके पीछे भी जरूर कोई ऐसी कहानी है जो सबसे छुपाई जा रही है इसलिए मैं रुक गयी जानने क्योंकि कभी भी एक पक्ष सुनने पर कोई फ़ैसला सही नहीं होता । दोनों पक्षों को मौका तो मिलना चाहिए अपनी सफ़ाई देने का और मैं बैठ गयी वहीँ मंदिर में एक कोने में उसके साथ जाकर ।

“हाँ, कहो,, सुनयना, क्या कहना चाहती हो ? मैं भी जानना चाहती हूँ आखिर ऐसा हुआ क्या जो तुमने ये कदम उठाया ? “

*****